आज से 25 साल पहले तक मुंबई में छठ पर्व का वैसा रूप नहीं था जैसा आज है। छठ के दिन संध्या के अस्ताचलगामी और अगली सुबह के उदीयमान सूर्य के दर्शन-पूजन करने आए कुछ बिहारी परिवार जरूर जुहू बीच पर पूजा करने आया करते। जुहू की रेत पर उन दिनों लाइटिंग, पानी, महिलाओं के कपड़े बदलने, सुरक्षा और रात बिताने की कोई व्यवस्था नहीं थी। रात के घुप्प अंधेरे में असामाजिक तत्वों के आतंक से जी कांपता। मुंबई छठ उत्सव महासंघ के अध्यक्ष मोहन मिश्र को 1993 की छठ पूजा याद हो आई, जब बिहार से आई 80 वर्षीय मां सुमित्रा देवी की धर्मनिष्ठा ने उन्हें सार्वजनिक पूजा के लिए कुछ न्यूनतम इंतजाम के जुगाड़ के लिए बाध्य कर दिया।
मोहन मिश्र बताते हैं, 'मुंबई में बिहारी समाज के प्रमुख कहे जाने वाले सूर्य नारायण मिश्र, दिवाकर झा, उमाकांत मिश्र, विनय कुमार झा, उचित नारायण झा, अनिल कर्ण, उदयकांत झा, नीलांबर, कृष्ण कुमार झा, आदि के परामर्श कर तय हुआ कि इस बार छठ व्यवस्थित ढंग से मनाना है।
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